फिर से इंसानियत जगा....
सुनसान गलियों से आवाजे आ रही हैं
इंसान न कोई परिंदा यहाँ रुका है.
दूर से एक शौर चिर रहा है ख़ामोशी को.
शायद किसी की जिंदगी पर ग्रहण रुका है!
कौन करें किसी की हिफाज़त अब किस को
परवाह है की क्या हुआ है.
अपने घर पर खुद को सबने सुरक्षित
रखा हुआ है.
खुद की रक्षा के लिए दरवाजे मे बंद हैं
है कुछ...
इंसान न कोई परिंदा यहाँ रुका है.
दूर से एक शौर चिर रहा है ख़ामोशी को.
शायद किसी की जिंदगी पर ग्रहण रुका है!
कौन करें किसी की हिफाज़त अब किस को
परवाह है की क्या हुआ है.
अपने घर पर खुद को सबने सुरक्षित
रखा हुआ है.
खुद की रक्षा के लिए दरवाजे मे बंद हैं
है कुछ...