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वक्त

© Nand Gopal Agnihotri
#हिंदी साहित्य दर्पण
#शीर्षक -वक्त खिलाड़ी
स्वरचित - नन्द गोपाल अग्निहोत्री
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कैसे-कैसे खेल खेलाता, वक्त है बड़ा मदारी ।
बड़े बड़े योद्धा भी निकले, वक्त के आगे अनाड़ी ।।
देता ढील पतंग में जैसे, उड़ो गगन में जी भर ।
फिर पेंच लगाकर काटे तो, धरती पे गिरे लहरा कर ।।
गिरते ही फिर लूट मचे, रह जाते हैं टुकड़े भर ।
फिर भी अहम् में खोए रहते, चेत नहीं रत्ती भर ।।
कल के राजा रंक बने, फिरते मारे-मारे ।
सजता है दरबार कभी, कभी खड़े हैं बिना सहारे ।।
वक्त हंसाता वक्त रुलाता, वक्त हैंं देता मौका ।
अहम् चढ़े जब सर के ऊपर, खा जाते हैं धोखा ।।