...

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एक चाँदरात
एक पूरा चाँद था
एक अधूरी आस थी,
उस चाँदरात मेरी
मेरे इश्क़ से मुलाक़ात थी।...

उमड़ घुमड़
फ़िर हल्की सी बरसात थी,
पिघल रही थी ज़मीं
शायद आसमां को प्यास थीं।...

क्या पता मेरे वजूद की मुझसे
ये पहेली सी बात थी,
या मिलके बिछड़ जाने वाली
महज़ मुलाक़ात थी।...

अश्क़ लिए आँखों में
पहली बार जो वो बोला था,
जैसे नज़्म भरी बातों से उसने
दिल का पर्दा खोला था।...

शिकायत के ख़त
नाराज़गी के लिफाफे थे,
मिलते ही उसने कुछ
मेरे साथ...