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ज़िन्दगी......
ज़िन्दगी काश.…...
तू कोई कविता होती
मैं नित नई लिखती तुझे
पन्नों में छिपा रखती तुझे
ना तुझे खो देने का कोई डर
ना पा लेने का क़िस्सा होता
मेरे मन के कोने में हर पल रहती
तू मेरा सबसे करीबी हिस्सा होता
बारिश में फुहारों सा लिखती
गर्मी में धूपों से होती रूबरू
बसंत में पीली सरसों खिलती
जाड़ों में प्रेमिल बाहों की जुस्तजू
कितना आसान होता ना तब तुझको जीना
ज्यों मां के हाथों बना मीठा शरबत पीना
मगर....
तुम तो ज़िन्दगी ठहरी
जेठ की तपती दुपहरी
जिसे बिताना है शीतल छाया में
कभी मोही बन कभी माया में
जैसी चाही तू वैसी बिल्कुल भी ना है
तुझे जीना है हां बस जीना है.......
तू कोई कविता होती
मैं नित नई लिखती तुझे
पन्नों में छिपा रखती तुझे
ना तुझे खो देने का कोई डर
ना पा लेने का क़िस्सा होता
मेरे मन के कोने में हर पल रहती
तू मेरा सबसे करीबी हिस्सा होता
बारिश में फुहारों सा लिखती
गर्मी में धूपों से होती रूबरू
बसंत में पीली सरसों खिलती
जाड़ों में प्रेमिल बाहों की जुस्तजू
कितना आसान होता ना तब तुझको जीना
ज्यों मां के हाथों बना मीठा शरबत पीना
मगर....
तुम तो ज़िन्दगी ठहरी
जेठ की तपती दुपहरी
जिसे बिताना है शीतल छाया में
कभी मोही बन कभी माया में
जैसी चाही तू वैसी बिल्कुल भी ना है
तुझे जीना है हां बस जीना है.......
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