...

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सोचना पड़ा
देखा जो आज आइना, तो सोचना पड़ा,
जो दिख रहा है सामने, वो क्यूँ उदास है,
नाक़ामियाँ-ज़िल्लत-ओ-ग़ुरबत, बिगड़ा मुक़द्दर,
क्या चीज़ है जो आज नहीं इसके पास है,
आंख इक अश्क़ों भरी है चीज़ मामूली,
मेरी हँसीं में है छिपा जो दर्द, ख़ास है,
प्यास-भूख और नींद तो हैं साथ हमेशा,
जो खो गयी कमबख्त वो इक चीज़, आस है,
बैरागी को कुछ था भरोसा अपने आप पर,
अब घूमता खोये हुए होशो-हवास है।
देखा जो आज आइना, तो सोचना पड़ा,
जो दिख रहा है सामने, वो क्यूँ उदास है।
© ajay_bairagi