...

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अपना मिलन
अपने मिलन का रुआव अच्छा था
दिलों में मोहोब्बत का ख्याब अच्छा था
नजरों ने बड़े अदब से आहे भरी अपने
मिलन कि अधरो पर उमड़ा सेलाव सच्चा था

अपने सीने से जब लगाया मेने तुम्हें
दिल को छू रूह में तुम उतर गए
नजरे मिली तेरी नजरो से कशिश में
फिर नैनो से तड़फ के अशरू बरस गए

आंखे तो तेरे दीदार में खो गई बस
रूह को तेरी तलब का एतवार रहा
लगा जिस्म एक ही हो गया अपना
रूह को तेरी झलक का सत्कार रहा

चूम लिया मेने तुम्हें माथे से बाहों में भरकर
अधरो से बड़ा लगाव रहा
छू लिया तेरी हर अदा ने मुझे भीतर तलक से
रूह तेरी से ऐसा लगाव रहा

ऐसे लगा जैसे मनोज अब मनोज से पुष्प हो गया
पुष्प भी मिलन से लगा ऐसे जैसे मनोज हो गया
अपनी मोहोब्बत का ये दौर लगता है हर रोज़ हो गया
© Manoj Vinod-SuthaR