...

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मुझे इक शे'र कहना है
कहाँ हो तुम आ जाओ
कि मुझे इक शे'र कहना है

मैं ख़्वाबों के नज़राने लिए बैठी हूँ
आँखों में यादों के ख़ज़ाने लिए बैठी हूँ
इन ख़्वाबों में रंग भरने
इन यादों को फिर सच करने
तुम कभी तो आ जाओ
कि मुझे इक‌ शे'र कहना है

इन सूनी वीरान पड़ी गलियों में
तेरे बग़ैर जो गुज़री इन सदियों में
बेजान पड़ी घर की दीवारों में
मेरी सोचों के इन ख़ाकों में
कुछ वक़्त साथ बिता जाओ
कि मुझे इक शे'र कहना है

जाने कहाँ किन सोचों में गुम हो
आईना देखूँ तो बस तुम ही तुम हो
मुझको मुझ ही से मिलाने आ जाओ
कि मुझे इक शे'र कहना है

कहाँ हो तुम आ जाओ
कि मुझे इक शे'र कहना है