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ये दिल क्या करे
गर फ़लक से सारे सितारे धरा पर उतर आयें।
नूर-ए-महताब ताबनाक चेहरे पर निखर जाए।
महफ़िल में शमा भी फीकी लगने लगे तुम बिन,
चाँदनी रोशनी माँगने खुद चलकर तेरे घर आये।

फ़ना हो न गर तुम पर तो फिर ये दिल क्या करे।
जो कभी कचनार कली थी खिल गुलाब हो जाए।
बचपन क्यों न अल्हड़ जवानी के लिए कुलाँचें भरे,
जब वो चन्दा मामा, फ़लक में मेरा चाँद हो जाए।

होने लगे जब सीने में सिहरन, तारत्व बढ़ने लगे।
छाने लगे होंठों पर लालिमा, समन्दर शराब हो जाए।
ये नाकाम दिल जब वो कहे उसके नाम सुपुर्द कर दूँ,
'पागल' गर तू चिलमन हटाकर बे-नकाब हो जाए।

© पी के 'पागल'