खोई चाबियाँ
#खोईचाबियाँ
जग जीता था जिंदगी सीधी - सादी;
धरा का दोहन करने लगी आबादी,
प्रकृति की अंधाधुंध हुई है, बर्बादी,
जबसे खोई है, जगत धर्म की चाबी।
जबसे खोई है जन जीवन की चाबी,
तबसे थम सी गई जीवन की गाड़ी;
बेवजह भटक रही ज़िन्दगी अनाड़ी,
पूर्व - पश्चिम हो या अरब की खाड़ी।
जबसे खोई है, ह्रदय की प्रेम चाबी,
तबसे जन - मानस काम हुआ हावी;
माया काया की बन चुकी है, चाबी,
वासना...
जग जीता था जिंदगी सीधी - सादी;
धरा का दोहन करने लगी आबादी,
प्रकृति की अंधाधुंध हुई है, बर्बादी,
जबसे खोई है, जगत धर्म की चाबी।
जबसे खोई है जन जीवन की चाबी,
तबसे थम सी गई जीवन की गाड़ी;
बेवजह भटक रही ज़िन्दगी अनाड़ी,
पूर्व - पश्चिम हो या अरब की खाड़ी।
जबसे खोई है, ह्रदय की प्रेम चाबी,
तबसे जन - मानस काम हुआ हावी;
माया काया की बन चुकी है, चाबी,
वासना...