चार दिन के, दो पल थे
बेकल से जो कल थे
चार दिन के, दो पल थे
एक टूटा हुआ तारा
लिए हसरतें, संभल के
टकराया कुछ तरह यूँ
ख़्वाबों के किसी पटल पे
...
चार दिन के, दो पल थे
एक टूटा हुआ तारा
लिए हसरतें, संभल के
टकराया कुछ तरह यूँ
ख़्वाबों के किसी पटल पे
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