मज़दूरी
हाथ में पड़े हैं भर-भर के छाले
शायद करते वो हाथो से बहुत काम है,
नहीं कोई चमक चेहरे पर,
शायद कभी नही किया आराम है
उनका मजदूर रखा दुनिया ने नाम है;
पैर में लगी है जाने कितनी चोटे
शायद मलम ना लगाना उनके लिए आम है,
हाथ में घड़ी नही शायद वक्त देता ना उनका साथ है
दो समय की रोटी मिलना उनके लिए बहुत बड़ी बात है,
उनका मजदूर रखा दुनिया ने नाम है;
जितना करते वो काम है वो कहां किसी की बस की बात है,
वो कपडे फटे...
शायद करते वो हाथो से बहुत काम है,
नहीं कोई चमक चेहरे पर,
शायद कभी नही किया आराम है
उनका मजदूर रखा दुनिया ने नाम है;
पैर में लगी है जाने कितनी चोटे
शायद मलम ना लगाना उनके लिए आम है,
हाथ में घड़ी नही शायद वक्त देता ना उनका साथ है
दो समय की रोटी मिलना उनके लिए बहुत बड़ी बात है,
उनका मजदूर रखा दुनिया ने नाम है;
जितना करते वो काम है वो कहां किसी की बस की बात है,
वो कपडे फटे...