8 views
कविता... कविता के लिए
विचार कभी कभी रुक जाते हैं
थकते नहीं हैं
पर रुकने के मध्य फिर भी मनन चलता है
इसी बीच समय बो देता एक नया विचार
और पनप उठती है कोई कविता
कविता.... जो प्रेम पर नहीं, जो बिछोह पर नहीं
ना मिलन पर ना समाज ना स्वप्न पर
ना किसी सत्य-असत्य.... ना किसी अन्य पर
बस... वो कविता स्वयं को करती परिभाषित
प्रत्येक विचार से परे
हर तर्क- वितर्क से परे
शून्यता लिए, असीमितता लिए
कविता....कविता के लिए.......
© vineetapundhir
थकते नहीं हैं
पर रुकने के मध्य फिर भी मनन चलता है
इसी बीच समय बो देता एक नया विचार
और पनप उठती है कोई कविता
कविता.... जो प्रेम पर नहीं, जो बिछोह पर नहीं
ना मिलन पर ना समाज ना स्वप्न पर
ना किसी सत्य-असत्य.... ना किसी अन्य पर
बस... वो कविता स्वयं को करती परिभाषित
प्रत्येक विचार से परे
हर तर्क- वितर्क से परे
शून्यता लिए, असीमितता लिए
कविता....कविता के लिए.......
© vineetapundhir
Related Stories
15 Likes
7
Comments
15 Likes
7
Comments