...

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कविता... कविता के लिए
विचार कभी कभी रुक जाते हैं
थकते नहीं हैं
पर रुकने के मध्य फिर भी मनन चलता है
इसी बीच समय बो देता एक नया विचार
और पनप उठती है कोई कविता
कविता.... जो प्रेम पर नहीं, जो बिछोह पर नहीं
ना मिलन पर ना समाज ना स्वप्न पर
ना किसी सत्य-असत्य.... ना किसी अन्य पर
बस... वो कविता स्वयं को करती परिभाषित
प्रत्येक विचार से परे
हर तर्क- वितर्क से परे
शून्यता लिए, असीमितता लिए
कविता....कविता के लिए.......


© vineetapundhir