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प्रकृति
ईश्वर से मिला प्रकृति को एक वरदान है "
इंसानो के लिए प्रकृति ही ईश्वर के सम्मान है,,,॥

प्रकृति ही जीवन है, प्रकृति ही विनाश है "
प्रकृति ही तो जीवन की आस है और वही हमारी सांस है,,,॥

उसके बाद भी प्रकृति पर हम करते अत्याचार है "
और यही उसके नियमो के खिलाफ है,,,,,॥

फिर भी प्रकृति ना जाने क्या-क्या सहती है "
इंसान के हर एक जुर्म पर वह हमेशा चुप रहती है,,,,॥

जाति,धर्म से नही होता है,एकता का कुछ लेना-देना "
यह प्रकृति बहुत बड़ी सीख हमे देती है,,,,॥

तभी तो एक ही घने जंगल में हर तरह के "
जानवरो की पूरी की पूरी फौज रहती हैं,,,,, ॥

बड़े-बड़े पेड़ों के ऊपर पक्षी भी तो चचाहाते है "
जानवर ही नही पक्षी भी प्रकृति की गोद में स्थान पाते हैं,,॥

जिस जंगल को हम डरावना जंगल बुलाते है "
उस जंगल को सभी पशु-पक्षी अपना घर आंगन बनाते है,,,॥

कहते है की पशु-पक्षियों में दिमाग  कहाँ होता है "
लेकिन कभी जंगल में जाकर देखो तो सही,,,,॥

दिमाग की कमी होने के बाद भी पशु-पक्षियों ने "
ईश्वर की खूबसूरत सी सृष्टि को कोई कष्ट नही पहुंचाया है,,,॥

इंसानों की तरह पशु-पक्षियों ने पेड़ का लाभ तो उठाया है "
परंतु उस पेड़ पर कभी उन्होंने  खंज़र ना चलाया है,,,,,॥

झरनो और नदियों से उन्होंने भी तो प्यास को बुझाया है "
फिर क्यों सिर्फ इंसानो ने ही उस पानी को मैला बनाया है,,,,॥

जिन पंचतत्वों से इंसानों ने शरीर पाया है उन्ही "
पंचतत्वों से पशु-पक्षियों ने भी तो शरीर पाया है,,,,,॥

तभी तो जल,वायु,आकाश,अग्नि,धरती के तत्वों का "
पशु-पक्षियों ने भी जी भर कर आनंद उठाया है,,,,॥

फिर ईश्वर की इस खूबसूरत-सी सृष्टि पर हम इंसानो ने "
किस हक से और क्यों अपना अधिकार जमाया है,,,,,॥

और यदि हक जमाया भी है तो हमने कौन-सा कदम "
प्रकृति को सुरक्षित रखने के लिए आगे बढ़ाया है,,,,॥

हमेशा हम इंसानो ने सिर्फ और सिर्फ प्रकृति को "
नष्ट करने का बहुत बड़ा योगदान निभाया है,,,,,॥

जंगल, पशु-पक्षी, इनको तो हम इंसानो ने ही डरावना बनाया है "
सच पूछा जाए तो पशु-पक्षियों ने प्रकृति के प्रति अपना फर्ज  बखूबी निभाया है,,,,,, ॥


© Himanshu Singh