"कैसे खुदको ही खो बैठे हम ... "
पुरे होकर भी अधूरे से है हम
कोशिश भरी इस अधुरी सी इस जींदगी मे
डर था दुसरो को खोने का
कैसे खुदको ही खो बैठे हम ?
अब ना रोने का मन होता है ना हसने का
शायद उमीद नाम की चीज को छोड बैठे हम
अब डर से ही डर सा लगता है
शायद होसला नाम की चीज को तोड बैठे हम
ना मंजिल की खबर है ना नतिजा पता है
शायद सफर नाम की चीज को याद कर बैठे हम
बस जीये बिना ही जी रहे है
बस जानना चाहते है कैसे खुदको ही खो बैठे हम ?॥
© Srushti Mahajan
कोशिश भरी इस अधुरी सी इस जींदगी मे
डर था दुसरो को खोने का
कैसे खुदको ही खो बैठे हम ?
अब ना रोने का मन होता है ना हसने का
शायद उमीद नाम की चीज को छोड बैठे हम
अब डर से ही डर सा लगता है
शायद होसला नाम की चीज को तोड बैठे हम
ना मंजिल की खबर है ना नतिजा पता है
शायद सफर नाम की चीज को याद कर बैठे हम
बस जीये बिना ही जी रहे है
बस जानना चाहते है कैसे खुदको ही खो बैठे हम ?॥
© Srushti Mahajan