...

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बारिश..,
यह गर्मियों के मौसम की पहली बारिश..
पहली-पहली मुहब्बत सी है,

तुम भी यूँ ही आयी थी मेरे जीवन में
जैसे सूखे से मरुस्थल में पानी की बूंदे,

याद है तुम्हें..
वो.. वो चलना तुम्हारे पीछे-पीछे भीगे- भीगे,

अज़ीब सा जनून था वो भी ना..!

आज यूँ ही बैठे बैठे खिड़की से इन बारिश की बुंदों को देख रहा था,
हाथ बाहर निकाला तो तुम्हारी स्मृतियों से में अंदर तक भीग गया..,

बारिश तो बंद हो गयी पऱ मेरे अंदर तुम्हारे बिरह का एक दरिया है.. जो क़भी नहीं सूखता,

तुम नहीं हो पऱ तुम्हारे स्पर्श का एहसास अभी भी है मुझमें,

काश तुम समझ पाती के..

तुमसे कोई रिश्ता ना होते हुए भी क्यूँ मुझे तुमसे इतनी कुर्वत सी है..,
यह गर्मियों के मौसम की पहली बारिश..
पहली-पहली मुहब्बत सी है!!

© बस_यूँही