...

10 views

"मुखौटे"
लाखों जवानियाँ कुर्बान हो गई हैं,
आज़ादी-ए-हिंद पर।
कईयों को तो कफ़न तक ना नसीब था,
वतन की राह पर।।
आज़ाद-ए-हिंद की डोर,
करके हमारे हवाले तो।
रुसवा हो गईं हर कुर्बानी उनकी,
देख वतन की बर्बत ये।।
जाति धर्म में देश ना बांटो,
सिंची है सभी ने लहू से अपने धरती ये।
इतिहास गवाह है हरपल गुलामी के,
जड़ पर ये जाती पाती है।।
कौन चोर है कौन सिपाही,
मुखौटे सभी ने डाले है।
बेच कर देश को हर नेता यही कहे,
हम तो वतन के रखवाले है।।



© शिवाजी

Related Stories