कलयुग का प्रभाव
आयु अब अपना महत्व खोने लगी है,
मान-मर्यादा बड़ों की कम होने लगी है।
रिश्तों में अब प्रेम
दिनोंदिन घटने लगा है,
अपनों पर से ही अपनों का
विश्वास उठने लगा है।
प्रगति अपनों की देख
लोग जलने लगे हैं।
अपने ही अपनों को
गिराने में लगे हैं।
सब अपना पराया भूलने लगे हैं,
रिश्तों को पैसों की तराजू में
तौलने लगे हैं।
साक्षर तो बढ़ने लगे हैं,
मगर...
मान-मर्यादा बड़ों की कम होने लगी है।
रिश्तों में अब प्रेम
दिनोंदिन घटने लगा है,
अपनों पर से ही अपनों का
विश्वास उठने लगा है।
प्रगति अपनों की देख
लोग जलने लगे हैं।
अपने ही अपनों को
गिराने में लगे हैं।
सब अपना पराया भूलने लगे हैं,
रिश्तों को पैसों की तराजू में
तौलने लगे हैं।
साक्षर तो बढ़ने लगे हैं,
मगर...