...

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नशा......
नशा........

कहते हैं लोग कि मैं बहुत नशा करता हूं,
घर बार सब छोड़कर,
आज कल मयखाने में बसा करता हूं,

कोई कहता है इसे बुरी संगत का असर
तो कोई कहता है होगा कोई ग़म या किसी की याद बसर,
सब ने बहुत तर्क देकर देख लिए,
लेकिन कोई ना बता पाया मेरी मैकशी का राझ मगर,

सच कहूं तो मैं नशा करता ही नहीं,
जिसे लोग नशा कहते हैं असल में वो मेरे लिए दवा है,
जो करती है तेरे यादों के नशे को बेअसर,
वैसे ही जैसे जहर को काटता है जहर,

तू तो खुश हैं अपनी जिंदगी में,
पर गया मुझे तन्हाई का ज़ख्म देकर,
तभी तो हर शाम गुजारता हूं मयखाने में,
साकी से रहमों करम की भीख लेकर........
!!
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© Rohit Kumar Gond