गुजरी जो बीती गलियों से
गुजरी जो बीती गलियों से
हर पगडंडी बोल उठी
खेत की मेड़, नए पुराने पेड़
कुछ पहचाने कुछ अंजान से
बहती हवा ने दी
शिकायत भारी थपकी
कल कल करती नदियाँ भी
सुनाने लगी मीठी झिङकी
आयी बड़े दिन बाद सखी
इतना समय कहां रही
क्या याद करके हमें
हुई तुम कभी दुखी
आंगन पार बूढ़े बरगद
...
हर पगडंडी बोल उठी
खेत की मेड़, नए पुराने पेड़
कुछ पहचाने कुछ अंजान से
बहती हवा ने दी
शिकायत भारी थपकी
कल कल करती नदियाँ भी
सुनाने लगी मीठी झिङकी
आयी बड़े दिन बाद सखी
इतना समय कहां रही
क्या याद करके हमें
हुई तुम कभी दुखी
आंगन पार बूढ़े बरगद
...