...

5 views

सफ़र और मैं
अगर हाँ में सर झुका दो,
तो मैं भी संग चल दूंगा,
तूफानों से लड़ते-लड़ते
मंज़िल तक निकल दूंगा।

वक्त का हर एक इम्तिहान
हम मिलकर सह लेंगे,
तू अगर साथ देगा तो हम
हर जख्म को सह लेंगे।

फासलों का डर न रखना,
मैं हर कदम तुम्हारे साथ चलूंगा,
हर दर्द में भी हंसकर
तेरे हाथों में हाथ रखूंगा।

बातें कम हों, पर दिल से हों,
ऐसा रिश्ता सजा पाएंगे,
मौसम चाहे जैसा भी हो,
हम उसे खुशनुमा बना पाएंगे।

तो बताओ अब, सफर के साथी,
क्या तुम भी ये चाहोगे?
मंज़िल से ज़्यादा इस सफर को
क्या मेरे साथ निभाओगे?

© rajib1603