...

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सीरत!
क्या कहुँ ये सोच कर मेरे शब्द रुक जाते हैं
क्या लिखु ये सोच मेरी कलाम थम जाती है।
उतारने चलता हूँ सीरत को तेरी,
सूरत तेरी ख़ुद-ब-ख़ुद उतर जाती हैं||

चित्रकार न था में बस एक शायर था मामूली सा!
बयां करते- करते तुझे शायरी ने मेरी ना जाने कब।
शब्दों का साथ छोड़, आरेख का हाथ
थाम लिया।
कुछ इस तरह यू चला ये सिलसिला था, कुछ इस तरह यू चला ये सिलसिला था...
की में खुद न समझ सका, की तू शायरी है, या हकीकत, या फिर कोई झूठा फसाना।।
~शिवम गौतम ✍️✍️✍️