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दुबिधा के द्वार खड़े किधर जाएँ
दुबिधा के द्वार खड़े किधर जाएँ
समेंट ले ख़ुदको या बिखर जाएँ
आगे बढूँ करूँ सामना हौशले से
या आँधी के पहले ही डर जाएँ
अंधेरे सियाह रास्तों पे भटक गया
तनिक रौशनी मिले तो घर जाएँ
वक़्त के घोड़े पर हूँ सवार
ज़रा थम जाए तो उतर जाएँ
© sushant kushwaha