...

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बातें करो
बोलो कुछ अपने घर की, कुछ बाज़ारों की बातें करो
रोज़ शाम जिनसे मिलते हो उन यारों की बातें करो
कैसा बीता दिन ये बतलाओ तो सही
जो देख रहे हो अभी उन सितारों की बातें करो

बाते करो दुनिया जहान की
अपनी बस्ती की गलियों की बातें करो
चाहे बात करो आम के बागान की
या नई नई खिली कलियों की बात करो

दिवाली के पटाखों की बातें करो
या होली पे खेले रंगो की
सवेरे के केसरी आसमान की बातें करो
या शाम के शांत लम्हों की

बस बाते करो मुझे सुन ना है
उन बातों को कविता में बुनना है
हा हा काफी देर हो गई मुझे ही बोलते
अब तुम्हारी बारी, मुझे तुम्हारे लफ्जों को सुन ना है