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बहता हुआ समय...
कोई खुदगर्जी देखे हम जैसे बच्चों की ..
जब मां खिलाती थी ..तो सौ नखरे करते थे
आज बड़े हो गए तो सारी आनाकानी छोड़ दी हमने

हमारे घर के हर कोने को शिकायत थी शायद हमसे
तो आज कुछ बनने की चाह में घर ही छोड़ दिया हमने

एक वक्त था जब हर रोज दोस्त मिल जाया करते थे
अब सपनों को पूरा करने की खातिर हर रिश्ता छोड़ दिया हमने

अब हर रोज अकेलेपन की कहानी लिखा करते हैं
अब तो वक्त ऐसा चल रहा है कि खुद से भी मिलना छोड़ दिया हमने...


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