...

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जान की परवाह
धूम्रपान हो गया ज़िन्दगी से ज़रूरी
शराब पीना जैसे बन गई मजबूरी
जान की परवाह किसे है आजकल

वाहन करते हैं हवा से बातें
मोबाइल के बिना कटती नहीं रातें
जान की परवाह किसे है आजकल

शरीर हो गया पैसों से भी सस्ता
दौलत के लिये मानवता का गला कटता
जान की परवाह किसे है आजकल

नशा किये बिना चल नहीं पाते
ज़र्दा तंबाकू व अफ़ीम हर वक्त खाते
जान की परवाह किसे है आजकल

डकैती मर्डर का होता है नग्न नृत्य
समाज में व्याप्त है कुकृत्य
जान की परवाह किसे है आजकल
© Mahender Pal