...

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“कितनी अजियतों के बाद मिलती है, दुख की घडी”
देखो कितने बे -असर ही रहे जमाने के रंग,
कि हर फुरकत में, हर लम्हा, तेरा याद आता है।

मुझे कुछ भी सूझता नहीं, तेरे सिवा जानेजां,
हर कीमत पर तेरा, चेहरा नजर आता है।

कि कितनी अजियतों के बाद, मिलती है दुख की घड़ी,
फिर पहलू में उलझकर तेरे, मेरा गुनाह नजर आता है।

रूह की हद से गुजर जाता है 'बुझता हुआ चिराग’,
रात होते-होते ये...