बस!!!
चलो बनो तुम फूल इस बारी
और जड़ मुझे बनने दो,
जिस प्रकार अकड़ते थे तुम
अब मुझे भी अकड़ने दो।
पता तो चले तुम्हें...
कि रहमोकरम का एहसान जताना
कितना दुःख देता है,
ख़ुद टूटकर तुम्हें मुरझाने की ज़िद
एक बार मुझे भी करने दो।।
तुम कुछ भी नहीं..
मैं हूँ... तो तुम्हारी अहमियत है,
ऐसे ही कई वाक्यों को अब मुझे भी दोहराना है।
क्या और कैसा होता है इन शब्दों का असर,
एक बार तो तुम पर भी आजमाना है।।
महसूस नहीं होता न दूसरों का दर्द?
नकाबपोश हो तुम..
इस झूठे नकाब को तुम्हारे चेहरे से हटाना है।
कोई देखे न देखे..
तुम्हें तुम्हारा असली चेहरा मुझे दिखाना है।।
बंद कर दो ये अहसानों का ढिंढ़ोरा पीटना..
शायद तुम पर भी किसी का अहसान हो,
बस उसने ये जताया नहीं..
क्यूँकी शायद तुम उसकी जान हो।
और कैसे देगा वो ख़ुद का झेला हुआ दुःख तुम्हें
जब उसका दर्द वो भलीभाँति जानता है,
जाओ..और मुक्त करो, इस बंद परिंदे की जान
अब इस पर कर रहे अहसानों से तुम आजाद हो।।
~वैष्णवी सिंह
© Vaishnavi Singh
#poem #hindipoem #hindipoetry
#hindikavitayen #hindilekhak #hindipanktiyaan
#kavita #bas #vaishnavisingh
और जड़ मुझे बनने दो,
जिस प्रकार अकड़ते थे तुम
अब मुझे भी अकड़ने दो।
पता तो चले तुम्हें...
कि रहमोकरम का एहसान जताना
कितना दुःख देता है,
ख़ुद टूटकर तुम्हें मुरझाने की ज़िद
एक बार मुझे भी करने दो।।
तुम कुछ भी नहीं..
मैं हूँ... तो तुम्हारी अहमियत है,
ऐसे ही कई वाक्यों को अब मुझे भी दोहराना है।
क्या और कैसा होता है इन शब्दों का असर,
एक बार तो तुम पर भी आजमाना है।।
महसूस नहीं होता न दूसरों का दर्द?
नकाबपोश हो तुम..
इस झूठे नकाब को तुम्हारे चेहरे से हटाना है।
कोई देखे न देखे..
तुम्हें तुम्हारा असली चेहरा मुझे दिखाना है।।
बंद कर दो ये अहसानों का ढिंढ़ोरा पीटना..
शायद तुम पर भी किसी का अहसान हो,
बस उसने ये जताया नहीं..
क्यूँकी शायद तुम उसकी जान हो।
और कैसे देगा वो ख़ुद का झेला हुआ दुःख तुम्हें
जब उसका दर्द वो भलीभाँति जानता है,
जाओ..और मुक्त करो, इस बंद परिंदे की जान
अब इस पर कर रहे अहसानों से तुम आजाद हो।।
~वैष्णवी सिंह
© Vaishnavi Singh
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