बस!!!
चलो बनो तुम फूल इस बारी
और जड़ मुझे बनने दो,
जिस प्रकार अकड़ते थे तुम
अब मुझे भी अकड़ने दो।
पता तो चले तुम्हें...
कि रहमोकरम का एहसान जताना
कितना दुःख देता है,
ख़ुद टूटकर तुम्हें मुरझाने की ज़िद
एक बार मुझे भी करने दो।।
तुम कुछ भी नहीं..
मैं हूँ... तो तुम्हारी अहमियत है,
ऐसे ही कई वाक्यों को अब मुझे भी दोहराना है।
क्या और कैसा होता है इन शब्दों का असर,
एक बार तो तुम...
और जड़ मुझे बनने दो,
जिस प्रकार अकड़ते थे तुम
अब मुझे भी अकड़ने दो।
पता तो चले तुम्हें...
कि रहमोकरम का एहसान जताना
कितना दुःख देता है,
ख़ुद टूटकर तुम्हें मुरझाने की ज़िद
एक बार मुझे भी करने दो।।
तुम कुछ भी नहीं..
मैं हूँ... तो तुम्हारी अहमियत है,
ऐसे ही कई वाक्यों को अब मुझे भी दोहराना है।
क्या और कैसा होता है इन शब्दों का असर,
एक बार तो तुम...