...

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ग़ज़ल
शुभप्रभात मित्रों।
दुपट्टे भी नहीं रहें अब तो चलन मैं रजनीश।
क्या घूरता है अब भी, जरा आँखों पे रहम कर।।
कभी पी कर शराब, मंदिर नहीं जाने देते।
लोग सच को सच से नहीं टकराने देते।।
एक हिसाब आँखिर मैं करूँगा जरूर।
की कितने गमों के बाद एक अदद खुशी आयी।।
वक्त बदल जाता है, और हालात भी रजनीश।
तमाशबीन भी एक दिन, तमाशा हों जाते हैं।।





© rajnish suyal