ग़ज़ल
शुभप्रभात मित्रों।
दुपट्टे भी नहीं रहें अब तो चलन मैं रजनीश।
क्या घूरता है अब भी, जरा आँखों पे रहम कर।।
कभी पी कर शराब, मंदिर नहीं जाने देते।
लोग सच...
दुपट्टे भी नहीं रहें अब तो चलन मैं रजनीश।
क्या घूरता है अब भी, जरा आँखों पे रहम कर।।
कभी पी कर शराब, मंदिर नहीं जाने देते।
लोग सच...