2 views
इंसान
हमारी घर के सामने एक बूढ़े माली कि दुकान है,
हर रोज सुबह सुरज के पहले किरण मै
प्रकार प्रकार फूलों से कई सुंदर फूलदाने बनाते है।
एक दिन बसे हैं बात बात पूछ लिया,
चाचा आप ये सब कियू करते है
बूढ़ा बयस मैं जाइये कहीं घुम घाम के आइये
अपने परिवार को साथ समय बिताइए,
अगर आप घर छोड़कर आये हैं, तो इस बयस मैं माफ़ करना भी सीखिये।
बूढ़ा ने कुछ समय लेकर बोला
बेटा, मैं जीवन को देखा हु, जब से व छोटा था
उसका बहुत सारे दोस्त थे, उसके पडोस मैं प्रेम और अभिमान रहते थे
सामने एक छोटी सी घर मे शांति रहते थी
तो बह सभी के साथ खेलतथा, घुमताथा, हसता था, रोता था,
अपने सारे समय खुशी के साथ बितात था।
जीवन बड़ा हुआ व छोटी सी महोला उसे कम पड़ा तो व सहर चला आया,
सबको साथ में लाया पर शांति को वहां छोड़ दिया,
समय बीतत रहा, एक एक करके सभी चले गए और उसे अकेला कर दिया।
फिर भी माना नहीं, किस्मत को दोष देने लगा,
अपने कर्म को सही बताते बताते जौवन तो चली गयी, बूढा होने लगा।
एक दिन अकेले में पीछे मुड़ कर देखा तो,
पीछे सारे हस रहे थे, सारे पूराने दोस्त चलेगए थे।
जब वह अपने आप को देखा, पाया कि वह अब इंसान नहीं कुछ और बन गया था,
अपने आप को कोस रहा था।
फिर वह ठान लिया,
ना मुझे धनबान बनना है, ना मुझे बुद्धिमान बनना है,
ना मुझे हिन्दू बनना है, ना मुझे मुसलमान बनना है,
ना मुझे ज्ञानी बनना है, ना मुझे शाक्तिशाली बनना है,
मेरे सिर्फ एक ही मकसद है, शांति तलाश में
कभी कुछ बन पाए तो एक पाक इंसान बनना है।
मैं वहां से चला आया,
और अपने पुराने दिनों को, दोस्तों को याद करके
पुराने किसो को समेटे ने कि कोशिश किया।
© Drath
हर रोज सुबह सुरज के पहले किरण मै
प्रकार प्रकार फूलों से कई सुंदर फूलदाने बनाते है।
एक दिन बसे हैं बात बात पूछ लिया,
चाचा आप ये सब कियू करते है
बूढ़ा बयस मैं जाइये कहीं घुम घाम के आइये
अपने परिवार को साथ समय बिताइए,
अगर आप घर छोड़कर आये हैं, तो इस बयस मैं माफ़ करना भी सीखिये।
बूढ़ा ने कुछ समय लेकर बोला
बेटा, मैं जीवन को देखा हु, जब से व छोटा था
उसका बहुत सारे दोस्त थे, उसके पडोस मैं प्रेम और अभिमान रहते थे
सामने एक छोटी सी घर मे शांति रहते थी
तो बह सभी के साथ खेलतथा, घुमताथा, हसता था, रोता था,
अपने सारे समय खुशी के साथ बितात था।
जीवन बड़ा हुआ व छोटी सी महोला उसे कम पड़ा तो व सहर चला आया,
सबको साथ में लाया पर शांति को वहां छोड़ दिया,
समय बीतत रहा, एक एक करके सभी चले गए और उसे अकेला कर दिया।
फिर भी माना नहीं, किस्मत को दोष देने लगा,
अपने कर्म को सही बताते बताते जौवन तो चली गयी, बूढा होने लगा।
एक दिन अकेले में पीछे मुड़ कर देखा तो,
पीछे सारे हस रहे थे, सारे पूराने दोस्त चलेगए थे।
जब वह अपने आप को देखा, पाया कि वह अब इंसान नहीं कुछ और बन गया था,
अपने आप को कोस रहा था।
फिर वह ठान लिया,
ना मुझे धनबान बनना है, ना मुझे बुद्धिमान बनना है,
ना मुझे हिन्दू बनना है, ना मुझे मुसलमान बनना है,
ना मुझे ज्ञानी बनना है, ना मुझे शाक्तिशाली बनना है,
मेरे सिर्फ एक ही मकसद है, शांति तलाश में
कभी कुछ बन पाए तो एक पाक इंसान बनना है।
मैं वहां से चला आया,
और अपने पुराने दिनों को, दोस्तों को याद करके
पुराने किसो को समेटे ने कि कोशिश किया।
© Drath
Related Stories
12 Likes
0
Comments
12 Likes
0
Comments