...

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" मुहब्बत की गली "
अक्सर वो मेरे ख़्वाबों ख़यालों में रहती है
उसकी यादें मेरी यादों में रहती हैं
तुझमें सुबह का सुकूं के पल हैं
तुझमें शाम की शालीनता के पल हैं
खिली हुई है चांदनी वो लताफ़त कलि से
मैं गुज़रता हूं तेरी मुहब्बत की गली से।
तू शुमार है खिले हुए चमन में
तू हर सांस बनी है आशिक़ों की
तू मुहब्बत का वो नूरानी ताज़ है
जिसे हर किसी को मयस्सर नहीं होता
तुझे रब ने बड़े सिद्दत से संवारा है
तू अनमोल रत्न है इस फिज़ा की
ये मुहब्बत मिली है बड़ी ख़ुशी से
अक्सर मैं गुज़रता हूं तेरी मुहब्बत की गली से।
तुझे कायनात वफ़ा की बहती धारा कहती हैं
तेरे जुल्फ़ों की खुशबू फैली है नज़ारों में
तू इक अमानत है सच्चे आशिक़ की
तू धड़कन ए ज़िन्दगी है रूह की
तू इबादत बन गई है आशिक़ी की
तुम्हें बसा लूंगा मैं अपनी पलकों में
तुम्हें छुपा कर कैद कर लूंगा दिल की दीवारों में
अक्सर मैं गुज़रता हूं तेरी मुहब्बत की गली से।

'Gautam Hritu'






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