...

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एकता
हैं सर्वशक्तिमान हम
चाहे हो धरती, आकाश, समुंदर य गगन,
लेकर धरती मां की कसम
रहते देश की सेवा मे हरदम।

केहलाते हम वीर सिपाही
जो न डरते कभी फिर चाहे हो जलती धूप या तेज आंधी,
जोड़े रखती हमें ये धरती
न कभी हमको भेदभाव सिखाती।

जननी हमारी अलग हो चाहे, या वेशभूषा हर प्रांत की बदले
तब भी हम देश पे मर मिटते,
क्योकि हम है भिन भिन प्रांतों से निकले
जहाँ की बोली, खाना, त्योहार सब निराले।

दूर घरों से रहते हम तब भी
ईद हो या दिवाली हम मिलकर जशन मनाते
मिठाई की कई किस्मे दिलों को भाती
रंगोली सी जो थाली सज़्ति।

जोड़े रखती हमें जो ये माटी
कभी न अपने से दूर करती
खेतों मे कई फसलें
और आंगन को रंग बिरंगे फूलों से भरती।

न रंग रूप, जाती, धर्म की चिंता होती
जंग के मैदान मे भारत माता के जैकारे लगते
एक ही थाली मे राम रहीम खाते
वहीं सर्वधर्म स्थल मे जोसेफ सोढ़ी शीश झुकाते।

ये कही और नही मेरे भारत की गाथा है
तभी तो हम सबको भाता है।
© Paricha24