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चुट फुट छींटे
सूखी जमीन पर चुट फुट छीटें पड़ती हैं, तो लगता है, वह, अमूल्य खुशबू कहीं से खरीद लाई है, हम सब को बिना दाम के बाँटने ।। उमस तन पर हवा भरी ये छींटें पडती हैं, तो लगता है, ये छींटें क्या हैं? पहली रात की, उभरती, जवानी के गालों पर, ललना के ललित लाल, गुलाबी अधरों के सुमधुर, सुकोमल चुंबन हैं।। चुट फुट छींटें झड़ती हैं, तो स्तब्धता में स्पंदन आता है। अपनी पूंछें गोल छत्र बना कर, गायें उछल-उछल पडती हैं।। खेतिहर कहता वरुण की हुई है कृपा हम पर, अब होगी धरा हरी भरी। फसल होगी, क्षुधा मिटेगी। धन्य, धरा पर निर्भर यह जीवन, शांति प्रदायिनी, हर्ष दायिनी, शक्ति प्रदायिनी
ग्राम्य जीवन है हम सबका । सार भरे जीवन में स्पृहणीय स्पर्शानंद कभी कहीं हुआ हो, तो, वह चुट फुट छींटों से झट पुलकित कर जाता है।
© Kushi2212