...

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श्रवण होना भूल जाता है...
एक सत्य जगत् का ये भी है कि,
बड़े होने पर पुत्र,
भूल जाता है, ज़िम्मेदारियां अपनी,
भूल जाता है, वादों वाली झूठी कहानियां अपनी,

एक ओर, पिता अपने पुत्र के बालपन में
अपने पुत्र के सुख के लिए,
कड़ी धूप को अपनाता है,
और स्वयं के लिए,
सुखरुपी पवन को भूल जाता है,
दूसरी ओर पुत्र,
अपने वचन को भूल जाता है,
और बड़ी ही सरलता से कोई पुत्र,
अपने पिता के लिए श्रवण होना भूल जाता है...




© Vartika_Gupta