...

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मजबूरी...!
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,

मेरा सफ़र अधूरा है . !
सपनों से कुछ दूरी है ,

खामोशी कुछ और नहीं ,
ये तो बस मजबूरी है . !

दुनिया का ये मंज़र है ,
किसकी ख़्वाहिश पूरी है ?

फ़िक्र में सारे उलझे हैं ,
मातम है बेनूरी है .. !

दिलवालों की बस्ती में ,
गम की बात ज़रूरी है . !

इश्क़ घुले जब साँसों में ,
शामें तब सिंदूरी हैं . !

स्वतंत्र न खुदको रोको तुम ,
तुमको भी मंजूरी है .!

#saloni_writes #मजबूरी