...

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ह्रदयविदारक आत्म-मुग्धता
मन में दर्द का सागर था,
मैंने चरणों में तेरे उड़ेल दिया..,
जब भाव बंधन में बंधकर,
"मैं" कमज़ोर हो गया...
ह्रदय में ऐसी आस का संग देखकर,
मारे शर्म के, "मन" पानी- पानी हो गया,
कैसी विकट माया है, प्रभु आपकी..
क्षण भर भी भूले आपको,तो क्षण भर -भर के हम भटके..
जबकि भटकना भी आपसे ,भटकना भी आपमें.. दूजा और कोई ठौर नहीँ हमारा..
हाँ,पल-पल तेरे आँचल को पाने हम बेहिसाब भटके..
अब तो गले लगा लो, प्रभूजी,हमें
अब तो बस...