...

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गज़ल
इश़्क जो मुझको शौकिया होता
हर सनम मेरा साथिया होता

दोस्ती मैं भी मय से करती जो
मेरी ख़ातिर तू साकिया होता

ऐब अपने मैं उस पे रख देती
ज़िंदगी में भी हाशिया होता

है तमन्ना कि नफ़रतों के दर
लाता दिल अम्न डाकिया होता

होता मक़सद न रौशनी का जो
दीप अंधेरों का साथिया होता

कातिलों को सजाएँ मिलती तो
रूह देती वो शुक्रिया होता

ज़िंदगी की ग़ज़ल 'शशि' कहती
कोई उसमें भी काफ़िया होता