...

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ग़ज़ल

लब पे हम जिन के लिए लफ़्ज़े-करम रखते हैं
आज कल हम पे वही नज़रे-सितम रखते हैं

हमने ऐ दोस्त निभाई हैं वफ़ाएँ अब तक
लोग तो सिर्फ़ वफाओं का भरम रखते हैं

कोई शिकवा है न अब हमको ग़मे-दुनिया ही
ज़हन में तेरे ख़्यालों की इरम रखते हैं

जिनको...