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परी आजाद परिंदा खौफ मैं!
तुम जब मेरे करीब आ जाती हो तो शब्दों का अकाल आता हैँ,
मैं दर्द ए शायरी का कारीगर,
प्यार की बातोँ से,
पन्ना बगावत मैं सुलग जाता है,
शाम के अँधेरे मैं चाँद की तरफ देखकर तुम्हें लिखना,
तुमसे मिलने से ज्यादा सकून दे जाता है,
मैं तन्हा आजाद परिंदा उड़ता आसमान मैं,
एक पिंजरा तेरी बांहों का,
पिंज़रा था तेरी यादों का,
ख्वाबों का,
मैं. मुसाफिर था तेरी राहों का
तकता था जलता था,
कोई गुज़रा उसने कहा -
ये पागल रोज़ किसका इंतज़ार करता है,
इंतज़ार,
इंतज़ार अच्छा लगता था,
तुझेें मिलने से ज्यादा,
तुम्हें पा लेने से कम,
दिल मैं एक अजीब सा ख्याल जगता था,
तुमनें खुद रो कर मुझे...