...

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नदामत आशिकी या जुदाई का
सीने में खलती रहती है... नजाने वो कौनसी बड़ी नदामत,
जो मजबूर करती रहती है साथ लेकर चलने को... बस उसीकी आदत।

जेहन में फैलाए रखे हैं उसने घायल करनेवाले नाखूनों से भरे पंजे;
यादों से उभरना चाँहू तो आगे बढ़ने नहीं देते इसके कसे हुए शिकंजे ।
अब बहकी ख्यालों में डूबे, बदल गए हैं मेरे हर नक्श व तहरीक की हरकत,
सीने में खलती रहती है... नजाने वो कौनसी बड़ी नदामत,
जो मजबूर करती रहती है साथ लेकर चलने को... बस उसीकी आदत।

खास बनी रहती है दिल में उसीकी तस्वीर जितना भी चाँहू मैं भूलना,
अर्से बीत गए पर फिर भी मिल न पाया मुझे उस जैसा कोई अपना।
हर चेहरे पे उसीको ढूँढ शर्मिन्दगी भरी आवारगी का भी लग गया मुझपर तोहमत,
सीने में खलती रहती है... नजाने वो कौनसी बड़ी नदामत,
जो मजबूर करती रहती है साथ लेकर चलने को... बस उसीकी आदत।

शाम व सहर हर वक्त कहती रहती हैं नजरें, वही उसकी बीती बात,
मौके तुझे...