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ठहराव
मुझे ठहराव बिल्कुल पसंद नहीं
जैसे पेड़ ठहरे हैं अपनी जगह
जैसे पहाड़ हिल नहीं सकते
जैसे समंदर चल नहीं सकता
जैसे फूल पड़े पड़े सूख जाते हैं
जैसे महल खड़े खड़े ढह जाते हैं
जैसे कविता जकड़ लेती है पन्ने को
जैसे बंजर जमीन रेगिस्तान हो जाते हैं
जैसे प्रेम करता व्यक्ति छोड़ जाता है
और ठहर जाती स्मृतियां उनकी
ताउम्र के लिए जीवन में...
क्या आप भी इसमें अपनी कुछ पंक्तियां जोड़ना चाहते हैं तो कॉमेंट करें
धन्यवाद
© Mistha prajapati
जैसे पेड़ ठहरे हैं अपनी जगह
जैसे पहाड़ हिल नहीं सकते
जैसे समंदर चल नहीं सकता
जैसे फूल पड़े पड़े सूख जाते हैं
जैसे महल खड़े खड़े ढह जाते हैं
जैसे कविता जकड़ लेती है पन्ने को
जैसे बंजर जमीन रेगिस्तान हो जाते हैं
जैसे प्रेम करता व्यक्ति छोड़ जाता है
और ठहर जाती स्मृतियां उनकी
ताउम्र के लिए जीवन में...
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