...

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कितना कुछ किया है
ये धरती
हम सब को
कितना कुछ देती है
हम सब का
करके सारे जुल्म स्वीकार
देती हैँ, प्यार अपरम्पार
अगर कर दे मना कुछ भी देने से
सोचिये जरा
फिर लोगों को अन्न कहाँ से मिलेगा
पानी कहाँ से...