...

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"वो जो उसी लम्हे में ठहर गया",,,
कोई आए या जाए,,
फर्क नहीं पड़ता,,
क्योंकि कोई किसी के लिए नहीं रुकता,,
मगर क्या वाकई?,,
यही हकीकत है,,
या,,शायद
लोगों ने उसका चलना तो देखा,,
मगर ठहरना नहीं,,

वो जो उसी लम्हे में ठहर गया,,
अपने प्यार के साथ,,
उसकी आखिरी सांस के साथ,,
वो भी, जो मर गया,,

लोगों ने उसके दिल को धड़कते सुना,,
मगर दिल की खामोशी,,
उसपे किसी ने गौर ही नहीं किया,,

हर कोई अपनी खुशी में इतना खो गए कि,,
"किसी को" "किसी का" दर्द दिखा ही नहीं,,
या शायद देख कर भी वो अंजान बन गए,,
क्योंकि वो "कोई","किसी" का अपना नहीं,,

हम कब इतना पत्थर दिल हो गए?,,
की,,
रात के सन्नाटो में...