...

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ज़िन्दगी
लम्हा लम्हा खिसकती ये ज़िन्दगी।
एक पल में, कितना बदलती ये ज़िन्दगी।

सोचा कई बार खुल के जी ले हम,
खुद में खुद ही, सिमटती ये ज़िन्दगी ।

कैसे खुश कर सकती हूँ मैं इसे?
चुपके चुपके सिसकती ये ज़िन्दगी।

एक जगह कैसे टिका कर रखूं इसे,
रेत की तरह ,हाथ से फिसलती ज़िन्दगी।

किस रंग को पसंद करूँ? किसे नापसंद?
हर पल नए , रंग बदलती ये ज़िन्दगी।