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तन्हाई।।...
अंधेरा हों चुका हैं चारों तरफ छाया केवल निराशा हैं,
तन्हाई हैं, बेरुखी हैं, पतझड़ हैं, आंखो में आंसू हैं और मैं हूं।
मैं मौन हूं, मैं टूटी हूं, मैं अकेली खड़ी हूं,
उस सफर में जहां कभी तुम साथ थे मेरे।
ख़ास थे, पास थे, सारी दुनिया थे,
थे नहीं अब भी हों।
वही प्यार मेरे सीने में अब भी दफ़न हैं तुम्हारे लिए,
वही मैं अब भी हूं जो अब भी तुम्हारी ही अमानत हैं।
मैं अब भी उसी प्यार की गुलाम हूं,
जहां तुमने अपने दिमाग की बात सुन वहां से आजाद हो गए थे।
मगर मैं अब भी नहीं हो पाई,
मेरे दिल ने इस रिहाई की कभी गवाही ही नहीं दी।
मैं अब भी झूठी आश में हूं हमारे फिर से साथ की।
अंधेरे में हूं, गुमनाम हूं, मैं हूं और मेरी ये तन्हाई हैं।।...

© ।। साक्षी_बर्मन।।
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शीर्षक:- तन्हाई।।....
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