आस/निराशा
समय बीत रहा पंख लगा के,
माथे पे शिकन, दिल में डर,चेहरे पे है उदासी..
ठाना था जो करके रहेंगे,
वही रह गया बाकी...
लेकर सपने आंखो में आया था न...
सोचा था खोलेगा पंख अपने, कुछ उम्मीदें साथ बांध लाया था न...
होंगे पूरे...
माथे पे शिकन, दिल में डर,चेहरे पे है उदासी..
ठाना था जो करके रहेंगे,
वही रह गया बाकी...
लेकर सपने आंखो में आया था न...
सोचा था खोलेगा पंख अपने, कुछ उम्मीदें साथ बांध लाया था न...
होंगे पूरे...