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अब ख़ुद को प्रवासी कहते नहीं सुन पाएंगे
अब ख़ुद को प्रवासी कहते नहीं सुन पाएंगे।
ये पूरा वतन तो अपना ही था ना सोचा था कि कभी सीमाओं के बंधन में बंधकर रह जाएंगे,
छोड़कर अपने गांव का वो आंगन, जिस शहर को अपना बनाया वहां पराये भी कहलाएंगे,
पहुंचे थे जहां कमाने को दो वक़्त की रोटी,ना सोचा था कि वहां भूख से प्राण मुंह को आ जाएंगे,
जिन रास्तों को ,जिन सड़कों को अपने पसीने से सींचा ना सोचा उन्हीं रास्तों पर भटकते ठोकरों...