...

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आहट ✍️
जी हां , फिर से आया एक करके पाप हूं
आज से मैं इश्क के सख्त खिलाफ हूं

मुझमें नही है रहमदिली मैं पत्थर से बना हूं
ऐसा नहीं है ऐसा मैं किसी डर से बना हूं
यूं ही तुझको डाल दिया फूलों की बस्ती में
माफ करना आरजू ए दिल करता इंसाफ हूं
आज से मैं इश्क के सख्त खिलाफ हूं

तू गर पाक साफ है मेरे घर में मुजरा क्यों
यहां तो सब वहशी है मेरी गली से गुजरा क्यों
आज बोलने दो मुझे किरदार उस सफेद पर
मैं ही जानूं रातों में जो सह गया चुपचाप हूं
आज से मैं इश्क के सख्त खिलाफ हूं

तेरी हमदर्दी से भला मुझे मुझ सा कोई मार ही दे
फिर से लौटकर आऊंगा वहम जेहन से उतार ही दे
वो जो इश्क की फहरीयत में अव्वल था वो मर गया
अब जो लश्कर आया है उसका सरदार आप हूं
आज से मैं इश्क के सख्त खिलाफ हूं

तुमने शिद्दत ए इश्क देखी है
तुमने मेरा जुनून नही देखा
कलम से उतरी स्याही देखी
मुंह से लगा खून नही देखा

अब तुम्हे समझना होगा , तुम्हारे पुण्यों का घड़ा भर चुका है !!
अब मेरे पाप का दौर शुरू होगा , मेरे अन्दर का इन्सान मर चुका है !!

जाओ , तैयारी करो , कोई फतवा जारी करो
मैं जिन्दा हो गया हूं , खातिरदारी करो



© दीप