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यादें और सीख..
हजारों ठोकरें खा कर भी, नाबाद बैठा हूं
मैं जहां पर कल बैठा था , वहीं पर आज बैठा हूं।
अंधेरों से नहीं शिकवा, नहीं अब किस्मत से नाराजगी कोई,
किस्मत को भी सम्हाल लूंगा मैं, अब ये ठान बैठा हूं।
छोड़ा है कई गैरों ने , कई अपनों ने भी रवाना किया,
मैं खुद को ही अपना मगर , अब मान बैठा हूं।
पलक भी ना झुकाई हैं, जिन्होंने धोखा देने में,
ऐसे दिल में बसने वालों की, अदाएं जान बैठा हूं।
मैं अब छोड़ बैठा हूं भरोसे की उस गाड़ी को,
सड़क पर हूं अकेले पर, मैं खुद के साथ बैठा हूं।
© Tarun.k.pathak
मैं जहां पर कल बैठा था , वहीं पर आज बैठा हूं।
अंधेरों से नहीं शिकवा, नहीं अब किस्मत से नाराजगी कोई,
किस्मत को भी सम्हाल लूंगा मैं, अब ये ठान बैठा हूं।
छोड़ा है कई गैरों ने , कई अपनों ने भी रवाना किया,
मैं खुद को ही अपना मगर , अब मान बैठा हूं।
पलक भी ना झुकाई हैं, जिन्होंने धोखा देने में,
ऐसे दिल में बसने वालों की, अदाएं जान बैठा हूं।
मैं अब छोड़ बैठा हूं भरोसे की उस गाड़ी को,
सड़क पर हूं अकेले पर, मैं खुद के साथ बैठा हूं।
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