...

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confusion
फंसी है नौका बीच में,
चारों तरफ confusion में।
खड़ी हूं उस नौका पे,
चारों ओर अंधेरे में।
परेशान कुछ हूं अभी,
सोचु क्या वो बात होगी।
सपने जिदगी के क्या सजाऊं,
कैसे उन्हें पुरा कर जाऊं।
धड़कन मेरी तेज है,
सोच-सोच के कल की बातें।
सोचु कि किस कल की होगी,
जिंदगी मेरी आज जो।
क्या कोई पल भी होगे,
जो कुछ खास हो।
सोचु बस कल की बाते,
confusion के संसार में,
क्या सही है, क्या ग़लत
इस confusion के बाजार में।
बीते लम्हे बीत गए
आने वाला क्या पता नहीं
रो-रो कर अब आंसू सूखे
फिर भी कल का कुछ पता नहीं।
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क्या, ये भी पता नहीं
क्या चुन लूं इनमें से इसका भी कुछ अंदाजा नहीं
जिंदगी अब मेरी अटकी इन पर ही
ये मेरी सुबह-शाम भी
हूं 10वीं में पता चल गया इस confusion के सागर से
किसी और से नहीं, बस इस सागर की गागर से