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बहते अशार!
आसमां में उड़ना चाहे बहुत ऊंचा पड़े,
ज़मीं पैरों के नीचे मगर रहनी चाहिए,
पी जाइए गुस्सा अपना कोई ग़म नहीं,
ज़मीर पे हो बात तो नहीं सहनी चाहिए,
ख़ामोशियों की ज़ुबां सब नहीं समझते,
कभी खुलकर भी बात कहनी चाहिए,
बहुत कत्लो-ग़ारत है दुनिया में अब तो,
अमन के लिए जैतून की टहनी चाहिए,
रिश्तों में ज़्यादा ऊंची दीवारें ठीक नहीं,
शुरुआत तुम करो मगर वो ढहनी चाहिए,
ठोकरें परेशानियां बेशुमार हैं माना मैंने,
रवानी है ज़िंदगी मुसलसल बहनी चाहिए!
—Vijay Kumar
© Truly Chambyal
ज़मीं पैरों के नीचे मगर रहनी चाहिए,
पी जाइए गुस्सा अपना कोई ग़म नहीं,
ज़मीर पे हो बात तो नहीं सहनी चाहिए,
ख़ामोशियों की ज़ुबां सब नहीं समझते,
कभी खुलकर भी बात कहनी चाहिए,
बहुत कत्लो-ग़ारत है दुनिया में अब तो,
अमन के लिए जैतून की टहनी चाहिए,
रिश्तों में ज़्यादा ऊंची दीवारें ठीक नहीं,
शुरुआत तुम करो मगर वो ढहनी चाहिए,
ठोकरें परेशानियां बेशुमार हैं माना मैंने,
रवानी है ज़िंदगी मुसलसल बहनी चाहिए!
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